लोकसृष्टिक्रमे आदौ भगवान् चतुर्मुखब्रह्मा सन्ततीनाम् आहार-रूपभेदैः साम्नां परिकल्पनं चकार। क्रुष्ट, प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, मन्द्र तथा अतिस्वार इति साम्नः सप्तस्वरेभ्यः क्रमशः, देव-मानव-पशु-गन्धर्व-अप्सरो-सपक्षिसमूहपितृगण-असुरगणसहितसंपूर्णस्थावर-जङ्गमादीनां उललेखनं तथा मानव- दैनन्दिनजीवनस्य विद्यमान दृष्टादृष्टमनोरथानां परिपूर्त्यर्थं साम्नां विधानानि अधोनिरदिष्टरूपेण सामवेद-ब्राह्मणानि प्रतिपाद्यन्ते॥
क्रमसंख्या | अभीष्टम् | सामनाम | गानसङ्केताः |
1 | श्रीसाधनम् | अङ्गिरसां हरिश्रीनिधनम् | ग्रामगेयगान 5,9,1. |
2 | यशोलाभः | इन्द्रस्य यशः | ग्राम. 6,2, 1-248 |
3 | सुन्दरदीर्घायुपुत्रलाभः | अपत्यम् | आरण्यकगान 3,4,1 |
4 | अभीप्सितस्त्रीप्राप्तिः | अश्विनोः साम | ग्राम. 5,6, 2-172 |
5 | रोगशान्तिः | काशीतम् | ग्राम. 1,3, 1-33 |
6 | मोक्षः | पर्क | ग्राम. 1,1,1,1 |
7 | कन्याभ्यः वरलाभः | शौनःशेपे | ग्राम. 1,1, 1-2,7 |
..... अनुवर्तते.......,
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